Sunday 23 October 2016

पलायन

आँखों में कामना और
शरीर में समर्पण लिए मेरा  नवयुव -सौंदर्य
तुम्हारे सहचर्य में  सिहरता है
यह प्रेम है
नाहक है तुम्हारा खारिज़ करना
इस भाव को गंभीरता से और
एक व्यर्थ मानसिक श्रेष्ठता के दम्भ में
सिगरेट के धुएं के छल्ले  बनाने की चेष्टा।

जब जीवन में आये क्षण रोने के
छोटे बच्चे सा रो लेना
श्रद्धांजलि है जीवन को
व्यर्थ है अपने कमरे के अंधेरों में
शराब का घूँट लेते
श्रीमद्भगवद के पंख लगाकर उड़ना।

पवित्र है स्वीकारना जीवन को
इसकी पूरी गरिमा में
असहमत हो यदि, श्रेयष्कर है संघर्ष
परिस्थितियों से जो नहीं रुचते तुम्हे
जय या पराजय, गौरवपूर्ण है
एक नपुंसक चिंतन से, जिसका पाथेय
औरत से घृणा और जीवन से पलायन है।

तुम नकारते हो प्रिय?
मुबारक हो एक स्नेहालिंगन को तरसती,
यह परित्यक्ता जिंदगी;
संबंधों की समस्त संभावनाएं जिन्हें तुमने
"व्यस्त हूँ", कह ठुकरा दिया।


(२ जुलाई , १९९३)

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