'पतलून पहना बादल' प्रसिद्ध रुसी कवि व्लादिमीर मायकोवस्की की प्रथम लम्बी कविता है. कॉलेज के दिनों ही पढ़ी थी किन्तु कभी भूल नहीं पाया. १९८३ में राजकमल प्रकाशन ने उनकी कविताओं का एक संग्रह निकाला था जिसमें अनुवादक राजेश जोशी थे. मेरे ख्याल से उस समय भी यह पुस्तक प्रायः अनुपलब्ध ही थी. एक मित्र के पिता की वैयक्तिक संग्रह में थी यह किताब सो न चाहते हुए भी लौटानी पड़ी. यह नहीं कर पाया की फोटो-कॉपी कर लूँ. लेकिन इसे ढूंढता जरूर रहा. बाद में ऐसी जरूरत नहीं रही क्योंकि इन्टरनेट पर तो सब उपलब्ध है. किन्तु जोशीजी का अनुवाद अभी भी नहीं है मेरे पास. जब भी मैं मायकोवस्की को अंग्रेजी में पढता हूँ, यह कमी और खलती है.
उस समय इस कविता की कुछ पंक्तियाँ अपनी diary में लिख लिया था.
मैं जानता हूँ
मेरे जूते की कील
गेटे की किसी भी कल्पना से ज्यादा विस्मयकारी है
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मैं कहता हूँ तुमसे
सबसे छोटा जीवित कण भी
अधिक अर्थवान है मेरी आज तक की सारी रचनाओं से
सारी रचनाओं से!
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मांस पेशियों और धमनियों से ज्यादा मजबूत नहीं होती कोई प्रार्थना
क्या काल से भीख मांगते रहना है हमें?
हम
हम में से हर एक
अपनी मुठ्ठियों में थामे है
दुनियां को थामने वाली लगामें
मायकोवस्की का जीवन-वृत्त किसी दुखद कहानी सा है. १८९३ जन्म, १९३० आत्महत्या. १९१५ में इस कविता के साथ ही तत्कालीन रूस के साहित्य-जगत में स्थापित. प्रेम, तिरस्कार, और कदाचित इनसे उपजे कुंठा ने इस अत्यंत विलक्षण प्रतिभा को अराजकता की ओर धकेल दिया. मेरा तात्पर्य वैयक्तिक जीवन में अराजकता से है हालांकि ये हमेशा ही सामाजिक अराजकता के भी आस-पास ही रहे. जीवन, मृत्यु और खासकर आत्महत्या जीवन भर इनके सोच का हिस्सा रहे. मरने तक, अंतिम दम तक ! हालाँकि एक बुल्लेट जब कनपटी पर रख कर चलायी गयी हो तब अंतिम दम के क्या माने !
लगता है मुझे
मरना
कठिन नहीं
इस जिन्दगी में
ज्यादा कठिन है
सृजन
जिन्दगी का
('सेर्गेई एसेनिन' कविता से)
उनकी कई कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद यहाँ उपलब्ध हैं
2 comments:
बंजारा जी,
मायकोव्स्की की लंबी कविता 'पतलून पहना बादल'समेत कई महत्वपूर्ण कविताओं के अनुवाद संग्रह रूप में राजकमल से नहीं, अनामिका प्रकाशन से प्रकाशित हुए थे। बाद में साल 2009 में पटना से प्रकाशित एक साप्ताहिक गणादेश के 2009 के साहित्य विशेषांक में मेरे लंबे आलेख के साथ मेरे द्वारा उनकी कई कविताओं के अनुवाद भी छपे। इस अंक में तीन आत्हंता कवियों पर एक साथ मेरी कई सामग्री है। बाद में कथादेश ने भी जुलाई 2010 में सेर्गेई एसेनिन पर मेरे आलेख व कविताओं के अनुवाद छापा।
बंधुवर,
१९८३ में परिमल प्रकाशन से आई थी यह पुस्तक (न की राजकमल जैसा मैने पहले लिखा है). ध्यानाकर्षन के लिया आभारी हूँ. आपके उक्त आलेख पढ़ने की ईच्छा है यदि कहीं उपलब्ध हो.
धन्यवाद
बंज़ारा
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